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अमेरिका ने कहा- अरुणाचल प्रदेश भारत का अटूट हिस्सा, हम 60 साल से इस पर चीन का दावा खारिज करते आए हैं

अमेरिका ने साफ कर दिया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है और इस पर चीन जो दावे करता है, वे गलत हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश में किसी बाहरी ताकत की दखलंदाजी घुसपैठ मानी जाएगी, और अमेरिका इसका सख्त विरोध करता है। अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने ये भी कहा कि एलएसी पर घुसपैठ चाहे आम नागरिकों की हो या सैनिकों की, अमेरिका इसका विरोध करेगा।

वक्त की अहमियत
भारत और चीन के बीच लद्दाख में तनाव चल रहा है। यहां कई हिस्सों में दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। ऐसे वक्त अमेरिकी विदेश विभाग का भारत के समर्थन में बयान जारी करना, चीन पर दबाव बना सकता है। अमेरिकी विदेश विभाग की फॉरेन प्रेस सेंटर यूनिट ने इस बारे में गुरुवार को बयान जारी किया। कहा- भारत और चीन की सीमा पर मौजूद कुछ हिस्सों पर हम अपना नजरिया फिर साफ कर रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश को हम 60 साल से भारत का अटूट हिस्सा मानते हैं। यहां होने वाली किसी भी एकतरफा कार्रवाई या घुसपैठ का अमेरिका विरोध करता है। फिर चाहे यह आम लोगों द्वारा की जाए या सेना द्वारा।

भारत के सामने चुनौतियां
विदेश विभाग ने कहा- भारत इस वक्त सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसी वक्त भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग तेजी से बढ़ा है, और ये दोनों देशों के लिए बेहद अहम है। हम भारत को एडवांस्ड सिस्टम और हथियार दे रहे हैं। इससे साफ हो जाता है कि अमेरिका भारत की सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर कितनी मजबूती से उसके साथ खड़ा है। दोनों देश सैन्य स्तर पर सहयोग कर रहे हैं। हिंद महासागर और दूसरी जगहों पर साथ अभ्यास कर रहे हैं।

चीन को जवाब दिया जाएगा
विदेश विभाग ने साफ कर दिया कि साल के आखिर में भारत और अमेरिका के बीच मंत्री स्तर की बातचीत होगी। टोक्यो में अगले महीने क्वाड समूह की बैठक भी तय वक्त पर ही होगी। इसमें भारत, अमेरिका, जापान के अलावा ऑस्ट्रेलिया भी शामिल होगा। इन चारों ही देशों को चीन अलग-अलग मोर्चों पर चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। इस मीटिंग में इन चारों देशों के विदेश मंत्री हिस्सा लेंगे। स्टेट डिपार्टमेंट ने यह भी साफ कर दिया कि चीन के आक्रामक रवैये का मुकाबला करने में कोई कमी नहीं रखी जाएगी।



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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पिछले साल 14 नवंबर को अरुणाचल प्रदेश दौरे पर गए थे। यहां उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की थी। चीन ने इस यात्रा का विरोध किया था।


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