बीते कुछ हफ्तों में ट्रम्प एक बात साफ करते आए हैं। पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट में तो उन्होंने इस बिल्कुल साफ कर दिया। ट्रम्प के मुताबिक, 3 नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के सामने सिर्फ दो विकल्प हैं। इनमें डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन की जीत शामिल नहीं है। इसका मतलब ये है कि चुनाव ट्रम्प ही जीतेंगे। अगर हारे तो मेल इन बैलट्स को गैरकानूनी या अमान्य घोषित कर देंगे। इस चेतावनी या कहें वॉर्निंग को गंभीरता से लेना चाहिए।
ट्रम्प क्या चाहते हैं
राष्ट्रपति की बात को समझिए। इसमें पारदर्शिता यानी ट्रांसपेरेंसी जैसी कोई चीज नहीं है। अगर वे चुनाव नहीं जीत पाते हैं तो फैसला सुप्रीम कोर्ट या हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में होगा। अब आप दोनों की स्थिति को समझिए। दोनों ही जगह ट्रम्प फायदे में हैं। और यही बात वो कई हफ्तों से और कई मंचों से दोहरा चुके हैं।
इससे ज्यादा और क्या साफ हो सकता है
मैं इस बारे में और ज्यादा साफ क्या कहूं कि- हमारा लोकतंत्र इस वक्त भयानक खतरे का सामना कर रहा हूं। ये खतरा सिविल वार, पर्ल हार्बर और क्यूबा के मिसाइल क्राइसिस से भी बड़ा है। इतना बड़ा खतरा तो वॉटरगेट कांड के बाद भी सामने नहीं आया था। मैंने अपना कॅरियर विदेश संवाददाता के तौर पर शुरू किया। उस वक्त लेबनान में दूसरा सिविल वार चल रहा था। इस युद्ध का मेरी जिंदगी पर बहुत गंभीर असर हुआ।
राजनीति का गहरा असर होता है
लेबनान सिविल वार के बाद मैं समझा कि जब एक देश में हर चीज सियासत से जुड़ जाती है तो क्या होता है। जब कुछ चुनिंदा नेता देश से ज्यादा पार्टी को अहमियत देने लगते हैं। जब कुछ कथित जिम्मेदार लोग ये साबित करने लगते हैं कि वे किसी भी कानून को तोड़ सकते हैं, अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें कोई रोकने वाला नहीं।
अब फिक्र होने लगी है
कट्टरपंथी जब हावी होने लगते हैं तो सिस्टम खराब होने लगता है, टूटने लगता है। मैंने ऐसा होते देखा है। मैं सोचता था कि अमेरिका में ऐसा कभी नहीं हो सकता। लेकिन, अब मुझे बेहद फिक्र होने लगी है। इसकी वजह ये है कि फेसबुक और ट्विटर हमारे लोकतंत्र के दो मजबूत आधारों सत्य और विश्वास, को खत्म कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि ये उन लोगों को अपनी बात रखने का प्लेटफॉर्म देते हैं जो अपनी आवाज नहीं उठा सकते। इससे पारदर्शिता बढ़ती है। लेकिन, ये भी याद रखिए कि इन पर ही बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो साजिशें रचते हैं, झूठ गढ़ते और फिर इसे फैलाते हैं।
सच और झूठ में फर्क जरूरी
इन सोशल नेटवर्क्स ने इंसान की खुद की सोच को खत्म कर दिया है। झूठ और सच में फर्क नहीं किया जाता। जब तक दोनों पक्षों में भरोसा नहीं होगा, तब तक आम लोगों की बेहतरी भी नहीं हो सकती। हेब्रू यूनिवर्सिटी के रिलीजियस फिलॉस्फर मोशे हालबर्टेल कहते हैं- राजनीति में मूल्य होने चाहिए। फैसले ऐसे होने चाहिए, जिससे दोनों पक्षों को फायदा हो। लोगों का भरोसा नहीं टूटना चाहिए। लेकिन, आज अमेरिका में ये नहीं हो रहा है। बाकी सब तो छोड़ दीजिए। यहां तो मास्क पहनने पर भी राय बंट गई है। और अगर हालात यही हैं तो फिर लोकतंत्र जिंदा नहीं रह पाएगा।
डेमोक्रेट्स पर भी सवालिया निशान
ऊपर दिए गए तथ्यों के आधार पर मुझे लगता है कि इस चुनाव में जो बाइडेन ही एकमात्र पसंद हैं। लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि डेमोक्रेट्स सियासत नहीं कर रहे। लेकिन, रिपब्लिकन्स से उनकी तुलना नहीं की जा सकती। रिपब्लिकन्स ने पहले रोनाल्ड रीगन और जॉर्ज बुश सीनियर को चुना। लेकिन, वे ये भी जानते हैं कि अभी ओवल ऑफिस में बैठा व्यक्ति कैसा है। अगर ट्रम्प को चार साल और मिलते हैं तो हमारे संस्थान खत्म हो जाएंगे, देश बंट जाएगा। इसलिए, मुझे लगता है कि अमेरिका की आशा यही है कि बाइडेन चुने जाएं। रिपब्लिकन्स के कुछ कम कट्टरपंथी लोग उनका साथ दें।
आज फीके रहे बाइडेन
बुधवार की डिबेट में बाइडेन नहीं चमक पाए। डिबेट की ही बात करें तो मैंने उन्हें बहुत प्रभावी कभी नहीं देखा। लेकिन, मुझे कोई शक नहीं कि वे सरकार को एकजुट करेंगे और वो क्वॉलिटी जरूर दे पाएंगे जो एक देश के तौर पर जरूरी हैं और जिनका यह देश हकदार है। इसलिए मैं कहता हूं- बाइडेन को वोट दीजिए। मेल से दें या फिर मास्क लगाकर बूथ तक जाएं और फिर वोटिंग करें। ताकि, ट्रम्प और फॉक्स न्यूज को नतीजों में धांधली का मौका न मिल सके। लोगों को प्रेरित करें और बाइडेन के लिए वोट कराएं। यह आप अपने देश के लिए करें। क्योंकि, हमारा लोकतंत्र इसी पर निर्भर है।
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