ऐन्टुआं स्काइराइट अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के नेशनल कैंपेन कमेटी के वरिष्ठ सलाहकार हैं। वे 2016 में हिलेरी क्लिंटन के चुनाव सलाहकार थे। उनका कहना है कि इस बार डेमोक्रेटिक पार्टी चुनावी पोल के रथ पर सवार नहीं है। हासारे पोल बाइडेन की ट्रम्प पर लगातार बढ़त दिखा रहे हैं। 2016 कि तुलना में 2020 के चुनावी समीकरण पर ऐन्टुआं ने दैनिक भास्कर के रितेश शुक्ल से बात की। पढ़िए संपादित अंश।
- क्या अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कुछ ऐसा है, जो पोल और मीडिया नहीं दिखा पा रहा है?
सारे चुनावी पोल तकरीबन वैसा ही दृश्य पेश कर रहे हैं, जैसा 2016 में देखने मिला था। लेकिन, हमारी पार्टी इस चुनाव में पोल के रथ पर सवार नहीं है। 2016 के चुनाव में ट्रम्प एक सेल्समैन और मार्केटिंग जीनियस के तौर पर उभरे थे। 2020 में भी वे वही पुराने हथकंडे अपना रहे हैं।
ट्रम्प असल में एक टीवी एंटरटेनर हैं, लेकिन, उनके दर्शकों का एक बड़ा वर्ग उनसे टूट रहा है। ट्रम्प चुनाव में होने वाली गड़बड़ी का डर बेच रहे हैं। ऐसे दौर में जब लोग पहले ही महामारी से डरे हुए हैं। लेकिन, महिलाएं, पढ़े-लिखे युवा और बुजुर्ग भी अब उनका माल खरीदने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि वे चुनाव हारने से होने वाले नुकसान की बात कर रहे हैं।
- आप ये कैसे कह सकते हैं कि ट्रम्प सिर्फ अपने फायदे या नुकसान की ही बातें कर रहे हैं?
अगर ट्रम्प को चुनाव हारने का डर नहीं होता तो वे डाक से भेजे जा रहे वोटों को फर्जी क्यों बताते? क्यों उनकी पार्टी द्वारा शासित टेक्सास जैसे राज्यों में भी पोलिंग स्टेशनों कि संख्या घटाई गई है। अगर ट्रम्प जनता के हिमायती हैं, तो वे जनता को वोट देने से रोकना क्यों चाहते हैं। ट्रम्प जानते हैं कि अगर जनता ने खुलकर वोट दिया, तो वे हार जाएंगे।
- 2016 और अब के चुनावों में क्या अंतर है?
2016 में ट्रम्प बाहरी के तौर पर देखे जा रहे थे। एक बड़ा वर्ग मानता था कि मंझे हुए नेताओं की तुलना में ट्रम्प जनता की समस्याओं को बेहतर समझेंगे। लेकिन, जनता ने उनका 4 साल का कार्यकाल देख लिया है। उनके अपने वोटरों की उम्मीद भी टूट गई है। ट्रम्प ने अपनी बात और व्यवहार से स्पष्ट कर दिया है उनमें गंभीरता नहीं है और वे जिम्मेदारी उठाने के लायक नहीं हैं।
- क्या ये अंतर चुनावी निष्कर्ष को बदल पाएगा?
ट्रम्प को 2016 में 52% महिलाओं, युवकों और बुजुर्गों ने बढ़त दिलाई थी। हमारी पार्टी के वोटरों का एक हिस्सा भी हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में नहीं था। लिहाजा, उसने वोट ही नहीं किया। इन कारणों से ट्रम्प जीते थे। 2020 में ये तीनों वर्ग ट्रम्प पर फिर से दांव लगाते नहीं दिख रहे।
- इस बार का चुनाव संस्थागत ढांचेे में बदलाव की मंशा से हो रहा है...
ऐन्टुआं ने कहा कि ये चुनाव अमेरिकियों की एकजुट हो रही निराशा की अभिव्यक्ति है। इसे खुद ट्रम्प ने हवा दी है। लेकिन, अब समय आ गया है कि अमेरिका में हर स्तर पर मूलभूत बदलाव किए जाएं। जनता आश्वस्त है कि बदलाव ट्रम्प के नेतृत्व में संभव नहीं है। ट्रम्प हटेंगे, लेकिन ये चुनाव संस्थागत ढांचे में बदलाव की मंशा से हो रहा है।
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